// आश्रम की प्रवृत्तियाँ //

गौशाला

हिन्दू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है एवं उनकी सेवा एवं रक्षा करना पुण्य कर्म माना जाता है। आज भी भारत के कुछ घरो में जब रोटी बनाते हैं, तो पहली रोटी गाय के लिए बनाई जाती है, उसके बाद अपने बच्चों एवं परिवार को देते हैं ।

आरोग्य साधना आश्रम में भी गौशाला है जहाँ पर गायों को रखा गया है, उनकी सेवा की जाती है एवं उनका पालन पोषण किया जाता है | गाय प्रेम एवं ममत्व का प्रतिक है। गाय माता की सेवा करने पर हमे पंचगव्य की प्राप्ति होती है|

पंचगव्य - गाय का दूध, दही, घी, छाछ एवं गोमूत्र है | पंचगव्य शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक है -
१. गाय के दूध एवं घी से शरीर की कमजोरी दूर होती है |

२. गोमूत्र पीने से त्वचा एवं अन्य बहुत सी बीमारियों से मुक्ति मिलती है, कैंसर जैसे बीमारी के इलाज में भी गोमूत्र उपयुक्त माना गया है |

३. गाय के दूध से बने दही और छाछ से त्वचा और बालो को नयी रंगत मिलती है |

४. गाय के गोबर की खुशबु भी हमारे लिए बहुत लाभदायक होती है, गोबर को सूखा कर कण्डे (उपले) बनाये जाते है एवं उनको अग्नि भोग व हवन में काम लिया जाता है तो उनकी सुंगन्ध से श्वास सम्बंधित बीमारी दूर होती है |

६. मानसिक रूप से तनाव ग्रसित होने पर एकबार गौशाला जाने पर मन में शांति मिलती है | गौसेवा करने से भगवान कृष्ण की सेवा करने का आभास प्रतीत होता है क्यूंकि श्रीकृष्ण को भी गाये अति प्रिय थी |

आरोग्य साधना आश्रम में ३० गाये और बछड़े है| जिनमे से कुछ गए आस - पास के स्थानों पर किसी बीमारी से ग्रसित थी एवं कुछ खाने पिने के लिए भटक रही थी | उनको गौशाला में लाकर उनकी सेवा एवं पालन किया जाता है |