// आश्रम की प्रवृत्तियाँ //

यज्ञ, मंत्र एवं सुगंध चिकित्सा

हमारी भारतीय संस्कृति में आज भी यज्ञ, जप एवं मंत्र का बहुत महत्व है। किसी भी तरह का मांगलिक कार्यक्रम पूजा, पाठ एवं यज्ञ के बिना पूरा नहीं होता था | आधुनिक युग में मनुष्यो के आचरण के अनुसार हमारी यह संस्कृति लुप्त होते दिख रही है | जहाँ पहले के युग में घर के आँगन में मंत्र, जप और हवन हुवा करते थे जिससे वातावरण सुंगधित एवं पवित्र होता था पर आज के युग में घर के आँगन में सिर्फ सोफा एवं टेबल लगी होती है | किसी के पास फुर्सत के पल ही नहीं होते है जो यह सब पद्धति को अपनाये | उससे भी ज्यादा अब उनके पास उतना ज्ञान भी नहीं है, आज के बच्चो को मातृभाषा हिंदी का ज्ञान नहीं है तो संस्कृत का ज्ञान होना तो असंभव है |

हमारे वेदो एवं उपनिषदो में मंत्रो एवं यज्ञों से होने वाले लाभों का उल्लेख किया गया है | इनसे सिर्फ वातावरण ही पवित्र एवं सुगन्धित नहीं होता बल्कि अनेक बीमारियों का निदान एवं उपचार भी होता है | यज्ञ से होने वाले धुएँ से हवा में होने वाले कीटाणु खत्म हो जाते है | यज्ञ करने से मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक शुद्धि होती है | घर के आस - पास का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है | यज्ञ सामग्री एवं हवन कुंड की सुगंध भी एक प्रकार की चिकित्सा का भाग है | इस सुगंध से श्वास सबंधित रोग दूर होते है | आज भी पुराने लोग अपने जीवन के अनेक संस्कारो (१६ संस्कार) में यज्ञ, जप एवं मंत्रोचार करते है । ईश्वर की आराधना करते है तो पहले दीया एवं कपूर जलाते हैं ताकि चारो तरफ सुगन्धित वातावरण हो एवं मन ईश्वर में लीन हो सके।

आरोग्य साधना आश्रम का भी यही लक्ष्य है कि हम सब प्रकृति से जुड़े रहे इसलिए आश्रम में वेदों की शिक्षा के साथ साथ मन्त्र उच्चारण एवं यज्ञ करना भी सिखाया जाता है | यहाँ आने वाले सभी लोगो को हमारी संस्कृति से जोड़े रखना एवं उन्हें जागरूक करना है |

हमारा प्रयास अपनी संस्कृति एवं प्रकृति को सहेज कर रखना है, बच्चों को संस्कारवान एवं सभी को आरोग्य जीवन यापन करने में अपना योगदान देना है | आज की परिस्तिथियो ने पुनः हमे अपनी संस्कृति की याद दिला दी है अर्थात एक बार पुनः आयुर्वेद, योग एवं प्रकृति की ओर अपने कदम बढ़ाना है |